नहीं बदल पाई अपनी " किस्मत "

नहीं बदल पाई अपनी " किस्मत "
मैं 'रानी' 42 साल के पड़ाव में आकर, पीछे मुड़कर देखने पर ,जिस दलदल में मैंने 20 साल पहले कदम रखा था, आज अपनी बेटी को उसी दलदल में खड़ी पा रही हूं, इससे दूर रखने की मेरी हर एक कोशिश बेकार, कौन दोषी है...... मैं, मेरे पति, हालात, गरीबी , या किस्मत का लिखा मान लु,
मुझे अच्छी तरह याद है अपना बचपन, लगभग मैं 10 साल की थी,मम्मी बताती है कि उनके शादी के 5 साल बाद बड़ी मन्नत से मांगी हुई संतान हूं," माता रानी" की दया और आर्शिवाद से मैं उनके गर्भ में आई, इसलिए उन्होंने मेरा नाम रानी रखा था, मेरे बाद और चार बहन और एक भाई, बेटे की चाह में मम्मी को 5 बेटियों का मां बनना पड़ा, अंत में एक बेटा हुआ, जो मुझसे 14 साल छोटा है,
हमारे घर की स्थिति बहुत ही खराब थी, पापा राजमिस्त्री थे, किसी दिन काम मिला, तो किसी दिन नहीं, ऐसे भी दिन होते थे, जिस दिन सुबह का बचा हुआ कुछ भी खाकर हम छः बच्चों को सोना पड़ता था, ऐसे गरीबी हालात में पली, आज भी उन दिनों के याद आते ही, आंखे भर आती है,देखते-देखते, हम सभी भाई-बहन, शिक्षा के अभाव में बड़े हो रहे थे, भाई बेटा होने के कारण स्कूली शिक्षा पा रहा था, हम ऐसे मौहल्ले में रहते थे जहां के लोगों को शिष्टाचार से कोई लेना-देना नहीं था, रास्ते में आते-जाते लड़कियों को छेड़ना आम बात थी, दिल नहीं करता कि घर से बाहर कदम रखे, मजबूरीवश बाजार, राशन और पानी लेने के लिए, मैं अपने बहन को साथ लेकर निकलती थी,
मेरी सोलह साल की ' बाली उमर ' मेरे मम्मी-पापा के लिए सिरदर्द बन गया था, घरवालों से पहले बाहर वालों को पता चल जाता है कि किसकी बहन- बेटी जवान हुई है, लोगों की बुरी नजरों से खुद को बचते-बचाते, घर के कामों में हाथ बंटाती थी,
उम्र किसी का इंतजार नहीं करता, पापा की रानी बेटी 16 से 22 की हो गई, पर कोई राजकुमार नहीं मिला, पापा के पास रूपये नहीं कि वो मेरे लिए दुल्हा खरीद सके, उनकी चिंता, उन्हें चिता की तरह जला रही थी, मेरे साथ-साथ मेरी चार बहने भी जवान हो रही थी, कभी-कभी मुझे ऐसा लगता कि काश मुझे कोई बड़ी बिमारी हो जाती और मैं मर जाती, एक बोझ तो कम होता, आत्महत्या भी नहीं कर सकती,लोग तरह-तरह की बाते बनायेगे,
मामाजी एक रिश्ता लेकर आते है, लड़का सरकारी नौकरी करता है, दो साल पहले उसकी शादी हुई थी, मगर छः महीने पहले दुभाग्यवश उसकी पत्नी का देहान्त हो गया, अकेले रहता है, उसे घरेलू लड़की चाहिए, दहेज नहीं चाहिए,पापा को ये रिश्ता अच्छा लगा, मंदिर में दस लोग जायेगे, शादी होगी और विदाई कर दी जायेगी, शादी के बाद पता चलता है कि उन्हें शराब की बुरी लत है, लाख कोशिश के बाद भी ये लत नहीं जाती, मेरी शादी-शुदा जिंदगी यू ही गुजर रही थी, मैं दो बेटियों की मां बनी, पिंकी और सीमा, इस बात पर भी झगड़ा होता कि मैंने बेटे को जन्म क्यों नहीं दिया,
शराब पीने की लत में, उन्होंने मेरे गहने बेचने शुरू कर दिये, मायके से कुछ नहीं मिला था, सब उन्होंने ही बनाया था, इसलिए वो उन गहनों पर अपना ही अधिकार समझते थे, उनकी तबियत खराब रहने लगी, नौकरी जाने में असमर्थ होने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, सारे रुपये अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती में उड़ा दिया, उनके गुस्से के सामने मेरी एक नहीं चलती, मैं चुपचाप अपनी दोनों बेटियों को लेकर घर के किसी कोने में पड़ी रहती,
कुछ दिनों बाद उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, वहां महिना दिन इलाज चला पर कुछ सुनवाई नहीं, र्दुभाग्यवश वो मुझे और मेरी बेटियों को अनाथ बनाकर चले गये, खुद को मोह-माया के जाल से आजाद कर, मुझे घुट-घुट कर मरने को छोड़ दिया,उनके स्वर्गवास के समय, पिंकी 10 साल की और सीमा 6 साल की थी, इन दोनों को लेकर मैं कहा जाती, मायके वाले खुद ही बहुत परेशान थे, उन पर बोझ कैसे बनु, मैं पढ़ी-लिखी भी नहीं कि कोई नौकरी कर पाती, उस समय मुझे समझ में आया कि पढ़ाई कितनी जरूरी है, हम लड़कियों के लिए, गरीबी से लड़ने के लिए एक हथियार है,कुछ भी करके मुझे अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाना होगा,
उस बुरे वक्त पर उनका एक दोस्त, जिनका अपना घर था, हमें भाड़े पर रहने दिया, पर हमसे भाड़ा नहीं लेते, उनके घर में और दो परिवार भाड़े पर रहता था, शर्मा जी के दो बेटे थे, जिनकी शादी हो चुकी थी, वो बाहर रहते थे,वो इतने बड़े घर में अकेले रहते थे, वही एक कमरा उन्होनें हमें दिया, मैं अपने दोनों बेटी के साथ वही खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी, लोगों के घर खाना बनाकर अपना गुजारा करती, अपने घर का खाना बनाती तो शर्मा जी का भी खाना बना देती, उसके बदले वो कभी-कभी मेरी बेटियों के स्कूल फीस दे देते, मुझे बहुत अच्छा इंसान लगे, इसी तरह दिन बितता है,
एक दिन मेरी तबियत बहुत खराब होती है, बुखार के कारण महिना दिन मैं काम पर नहीं जा सकी, ऐसे में हमारे घर का पूरा खर्च शर्मा जी ही चलाते है, मेरी नौकरी भी चली गई, अब हमारी मुशीबते और बढ़ गई, इस बीच उन्हें मेरे करीब आने का मौका मिल गया, वो मेरे साथ शारिरिक संबध बनाना चाहते थे, मैं नाकार गई, फिर मेरे समझ में आया, कोई किसी के लिए इतना सबकुछ निस्वार्थ नहीं करता, यहां मेरी बेटियाँ सुरक्षित थी, बाहर की दुनियाँ में हर पल खतरा है, कोई और ठिकाना नहीं, अगर मुझे यहां रहना है तो इनकी शर्त माननी होगी,मैं उनके एहसानों तले दबी होने के कारण मजबूर थी,
मैं हर-हाल में अपनी बेटियों को शिक्षित बनना चाहती थी, देखते-देखते 10 साल की पिंकी B.A 1st years की छात्रा है, वह मुझसे भी खुबसूरत, कोई एक बार देखे तो, पलटकर दुबारा जरूर देखे, इतनी प्यारी दिखती थी,उसकी इसी सुंदरता से मेरी नींद उड़ गई थी, मैं जल्दी से उसके हाथ पीले करना चाहती थी, एक साल की और पढ़ाई थी, उससे आगे नहीं पढ़ाना था, शादी देना ही सही फैसला था,
कॉलेज के लड़को के साथ उसका इधर-उधर घूमना, मुझे अच्छा नहीं लगता, लोग तरह-तरह की बाते बनाते, बिन पाप की बेटी है, मां की कौन सुनता है, मैं बहुत समझाती थी, जिससे हमारे बीच तर्क हो जाता, लेकिन वह अपनी ही करती, लड़को के साथ देर रात घर लौटना, उनसे मंहगे- मंहगे उपहार लेना, मुझसे झूठ बोलना भी सीख चुकी थी,मुझसे संभाल नहीं आई तो शर्मा जी समझाने की कोशिश किये, पिंकी ने उनकी बात का भी मान नहीं रखा, वो चुप लगा गये, पढ़ने के लिए दी गई छूट का उसने गलत इस्तमाल किया, फिर भी मैं हार नहीं मानी थी, हमेशा समझाने की कोशिश करती,
एक दिन पिंकी अपने दोस्तों के साथ, कहीं बाहर घूमने गई थी, सीमा नाना-नानी से मिलने गई थी, उस रात मैं खाना बनाकर मिश्रा जी को देने गई थी, वही उनके घर आधा घंटा के लिए बैठकर T.V देखने लगी, मुझे नहीं पता था कि पिंकी आज ही लौट आयेगी,घर में मुझे नहीं देख, वो शर्मा जी के घर आ गई, वहां वो हम दोनों को एक-दूसरे के बाहों में देख लिया, मेरी नजर पिंकी की नजर से मिल गई, मैं शर्म से पानी-पानी हो गई, और जल्द ही अपने घर चली आई, आकर देखती हूं कि वो गुस्सा से अपने कमरे में बैठी है,
मैं......... खाना लाऊँ,
पिंकी....... जरूरत नहीं,
मैं........ शर्मा जी को खाना देने गई थी,
पिंकी....... मैंनें देखा आप क्या कर रही थी, मुझें आपको अपनी मां बोलने में शर्म आ रही है,मुझे डाटती
है, खुद
मैं........ बेटी तुम्हारे पापा के गुजरने के बाद, उन्होंने हम सबके लिए बहुत कुछ किया, मैं मजबूर थी,
उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए, बाहरी दुनियां में दोनों बहनों को सुरक्षित नहीं रख पाती,
पिंकी....... अपनी मस्ती को मजबूरी का नाम मत दो,
मैं.........नहीं बेटी, मेरा पास दूसरा रास्ता नहीं था,
पिंकी....... माना, मगर जब आप करती हो तो, मुझे क्यों मना करती हो,
मैं........ गलत काम मजबूरी में किया जाता है, शौक से नहीं, तुम शौक से अपने छोटे-छोटे जरूरतों के
लिए अलग-अलग लड़कों का इस्तमाल करती हो, यह बहुत ही गलत है,
पिंकी....... मुझे आपकी शिक्षा की जरूरत नहीं, आज के बाद मै आपका मुंह देखना चाहती, कल सुबह
सारी दुनियां को आपके और मिश्रा जी के रिश्ते का पोल खोल दूंगी, आप किसी को मुंह दिखाने
के काबिल नहीं रहेगी, लोग मुझे भला-बुरा कहते है, सीमा की अच्छी मम्मी हो, नाना-नानी की
रानी बेटी हो,बहुत नाज है ना, उन्हें आप पर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
“पिंकी अपशब्दों की बरसात करती रही, उसकी 'मां' खामोश पत्थर की मूरत बनी रही, सोचती है जिसके लिए गलत कदम उठाई, आज वही उस पर आरोपों की तीर चला रही है”
आधी रात को उनके घर से निकलते हुए धुएं को देखकर सभी अपने घर से दौड़ते हुए, उसके घर आते है, रानी खुद को एक कमरे में बंद कर आग लगा चुकी थी, पिकी बाहर दरवाजा पीट रही है, अंत में पड़ोसी दरवाजा तोड़ देते है, जल्दी से आग बुझाया गया पर वह बूरी तरह जल चुकी थी,
पिंकी......... ये क्या किया 'मां'
मैं.......... मुझे ' माफ ' कर दो,
"अस्पताल ले जाने के पहले ही मां ने अपनी बेटी की बाहों में दम तोड़ डाला"
Rita Gupta.