'जीने' के लिए आवाज उठाना पड़ा,

'जीने' के लिए आवाज उठाना पड़ा,

सीमा की कहानी, उसकी जुबानी.........................

मैं 'सीमा' नाम के लिए रीमा की जुड़वा बहन हूं, रीमा मुझसे 5 मिनट पहले, आकर मेरी दीदी कहलाने का हक पाया, जब से मुझे याद है तब से लेकर आज 16 साल की उम्र तक मुझे किसी से भी वो प्यार नहीं मिला, जिसकी मैं बराबर की हकदार थी, हम जुड़वा थे, हक तो मेरा भी उतना है जितना हक रीमा का है, किसकी और क्या शिकायत करू, जब भगवान ने ही, एक नजर से नहीं देखा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

भगवान ने ऐसा क्यों किया, मैं काली-रीमा गोरी,मैं सुस्त-वो फुर्तीली,मेरा रोतलु चेहरा-रीमा का हंसमुख चेहरा, बचपन से ही कोई भी कही भी जाता, उसे अपने साथ लेकर जाता, मैं घर पर रह जाती, धीरे-धीरे बड़ी हुई, लोगों की नजरों की भाषा समझने लगी, मेरे रंग-रूप के कारण, घर के लोगों का ध्यान मेरें तरफ से हटकर रीमा की तरफ आकर्षित करता, मेरे अंदर हीन भावनाओं का जन्म होना शुरू हो चुका था, मैं खामोश रहनें लगी, लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया, मेरी पढ़ाई भी अधुरी रह गई, अब मैं हमेशा घर के कामों में खुद को इस तरह लगा दिया,

अगर कोई अजनबी हमारे घर आता तो वह रीमा को मम्मी-पापा की बेटी और मुझे नौकरानी समझता, शायद जब मैं ही खुद को नौकरानी समझने लगी थी, तो दुसरे का क्या दोष, हीन भावनाओं से इतनी ग्रस्त हो चुकी थी कि जीने की इच्छा समाप्त हो चुकी थी,

हमारी शादी के लिए, घरवाले लड़का देखना शुरू करते है, लड़केवाले देखने आते तो रीमा को छिपाकर रखा जाता, ताकि कोई मेरी जगह उसे पसंद ना कर ले, पापा मेरे लिए लड़का देखते-देखते थक चुके है, उनकी ऐसी हालत देखकर मुझे रोना आता, मुझे खुद से नफरत होने लगा, मन-ही-मन फैसला कर चुकी खुद को खत्म करने का, पर आत्मा हत्या से नहीं, इसमें घरवालों की बदनामी होगी, कोई और रास्ता,

हम सब 5 भाई-बहन है, घर में बहुत ही काम, जब जिसको समय मिलता, खाना खा लेता, मैनें सोचा खाना धीरे-धीरे कम, फिर बंद कर दूंगा, इससे कमजोर होकर बीमार हो जाऊंगी, अंत में भगवान को प्यारी हो जाऊंगी, मैं अपने योजना पर खुद को लगा दिया, सारा दिन काम करती रहती, कोई खाने बोलता तो बोल देती कि खाना खा लिया, छः महीना बार इतनी बुरी तरह बीमार पड़ी कि ठीक होने का नाम नहीं, खून की जांच होती है और भी कुछ जांच किया जाता है, पता चलता है कि लीवर में सूजन आ गया है, रक्तचाप बहुत ही निम्न है, सूजन जल्दी ठीक नहीं होने से बीमारी बिगड़ा हुआ रुप धारण कर लेगा, फिर मरीज का बचना नामुनकिन है,यहां के डाक्टर जबाब दे चुके थे, उन्होंने चिन्नई ले जाने की सलाह दी,

मुझे जब पता चला कि मेरी बीमारी बहुत ही खतरनाक अवस्था में जा चुकी है तो थोड़ा दुःख हुआ, खुशी भी हुई, अब मेरे घरवालों को मुझसे, और मुझको घरवालों से छुटकारा मिल जायेगा, क्या होगा जी कर, जब किसी को मुझसे प्यार ही नहीं है,मैं अवाक तब हुई ,जब मम्मी-पापा गहना बेचकर मुझे चिन्नई ले गये और दिन-रात मेरी सेवा कर बचा लिया, मुझे पता नहीं था कि वो मुझे इतना प्यार करते है, मैं बचपन से गलतफैमी में जी रही थी कि मुझे कोई प्यार नहीं करता," अब मुझे पता चला कि, हर बच्चा अपने मम्मी-पापा को प्यारा होता है, ये बात और है कि किसी बच्चें के ऊपर थोड़ा ध्यान ज्यादा होता है"

"एक हाथ की पांच उंगलियों के समान, हम पांचो भाई-बहन है, सब एक-दूसरे से अलग है, पर सभी प्यारे है, सबके लिए मम्मी-पापा के दिल में, एक समान जगह होता है"मेरी शादी ठीक नहीं हो पा रही थी, इसलिए रीमा दीदी की शादी पहले कर दी गई, बीमारी से उठने के बाद मेरी सोच बदल जाती है, घरवालों के साथ लगाव हो जाता है, जीना आ जाता है, अधूरी पढ़ाई की कमी को, सिलाई-कढ़ाई और पार्लर का काम सिखाकर घरवाले पूरा करते है,

बहुत सारे रिश्ते देखते-देखते, एक जगह रिश्ता तय हो जाता है, लड़का स्कूल शिक्षक है, अभी 5,000 रुपया मिलता है, बाद में बढ़ेगा, यह बोलकर लड़केवालों ने रिश्ता ठीक किया, लड़का देखने में मुझसे अच्छा है, इसिलए पापा ने मुंहमांगा किमत देकर मेरे लिए दुल्हा ढुढ़ा,इतना रुपया देकर शादी करना, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, घरवालों के फैसले के आगे मैं चुप थी, शादी तो बढ़े धूम-धाम से होती है, ससुराल पहुंचने के बाद उनलोगों का एक-एक सच सामने आता है, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है, ससुर जी के कमाई से पूरा परिवार का खर्च चलता है, सास-ससुर, पति- मैं, दो देवर, दो ननद सबकी जरूरत और एक की कमाई,

पति जी कोई शिक्षक नहीं है, झूठ बोलकर शादी की गई, एक पहर खाना पकता तो दूसरे पहर के लिए सोचना पड़ता, सास वो जो सांस न लेने दे, दोनों ननद अपनी मां के बताये गये नक्शेकदम पर चल रही है, ससुर जी की चलती नहीं, पतिदेव जी 'बेटा श्रवण' है, जो मां-बाप के इशारे पर चलते है, उनकी सोच है, मम्मी-पापा, भाई-बहन खून के रिस्ते है, इन्हें नाराज नहीं करना, पत्नी का क्या है, एक छोड़कर जायेगी तो दूसरी आ जायेगी,

मैं सब-कुछ ,चुपचाप सह रही थी, ये सोचकर कि एक दिन सबठीक हो जायेगा, सबके ताने सह रही थी, सब्र का बांध उस दिन दुटा जिस दिन हमारे मामा ससुर, मुझे देखने आये थे, मैं दो महीना पुरानी दुल्हन थी, वो साधु बन चुके है, उनके बारे में पति जी से सुनी थी, इनलोगों पर उनकी कृपा हमेशा रहती है, वो इनलोगों के लिए भगवान समान है, हमारी शादी में तीर्थ पर गये थे, इसलिए अब मुझे देखने आ रहे है,

एक दिन सुबह-सुबह वो आते है, उनके स्वागत में पूरा परिवार लगा है,

सास........ बहू, बड़ा वाला थाली में,पानी लेकर आओ, मामाजी का पांव (पैर) धों दो,

मैं........... मैं चुपचाप उनकी आज्ञा का पालन करती हूं,

"थाली में पानी लेकर मामाजी के पास गईं, उन्हें प्रणाम किया, उनके दोनों पैर को थाली में रख, अपने हाथों से धोया फिर तौलिये से पोंछ दिया और मैं पानी लेकर आने लगी"

सास........ कहाँ जा रही हो, पानी यहि रखो और बैठो,

मैं........... बैठ गई,

सास........ ये हमारे लिए भगवान है, पैर धोया हुआ पानी में से दो चुरूआ (अंजुली) पानी पी लो,

मैं.......... मैं अवाक से पति जी की तरफ देखने लगी ( वो इशारा करते है कि पानी पी लु ) मेरे आंख में

             आंसू आ जाते है, पैर धोया हुआ गंदा पानी पीना, ये सोचकर घींन आती है, मैं चुप से बैठी हूं,

सास......... क्या हुआ, पीने बोला गया,

मामाजी....... जाने दो, आज के युग की लड़की है, तुम लोगों ने जितना प्यार-सम्मान दिया, उतना अब

                के बच्चे नहीं दे पायेगे,

पति....... नहीं मामाजी, ऐसी बात नहीं है, वो जरूर पियेगी ( गुस्साते हुए मेरी तरफ देखते है )

मैं..........( इतनी लाचार थी कि उस गंदे पानी को दो अंजुली पी )

सास....... अब थाली लेकर जाओ,

"मैं थाली आंगन में रख, अपने कमरे में जाकर जी भरकर रोई, ये कैसा अत्याचार है, मुझें नीचा दिखाकर, अपने काबु में रखने की चाल, कोई इंसान भगवान के समान पूज्यनिय हो सकता है पर वह भगवान नहीं हो सकता, किसी को सम्मान देने का मतलब ये नहीं होता जो मेरे ससुरालवालों ने मुझसे करवाया, यहि से शुरुवात होती है 'मेरी जंग' अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की"

आज मेरी शादी को 5 साल हो गये, 3 साल का मेरा बेटा है, ससुरालवालों के हर चाल का तोड़ निकालते हुए, संघर्षमयी जिंदगी जी रही है, कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं जी नहीं सकती, जब मेरा पति ही मेरा साथ नहीं देता तो मैं अकेली क्या कर सकती, मैं अपने बेटे के लिए, उसके हक के लिए, हर- हाल में उनलोगों के साथ अधिकार की लड़ाई लड़ रही हूं, जीने के लिए आवाज उठाकर, उनकी नजर में अच्छी बहू नहीं हूं, शायद एक अच्छी 'मां' बन सकू,

                                                                                        Rita Gupta.