सबसे बड़ा " रुपैया "

सबसे बड़ा " रुपैया "

सतयुग के लोगों के लिए " रूपया " ही सब कुछ नहीं होता था क्योंकि ' सामान के बदले सामान ' का आदान-प्रदान हुआ करता था, बहुत से चीजे तो निःशुल्क मिलती थी, जैसे कि प्यार,अपनापन, सम्मान, श्रद्धा इत्यादि.................

अब युग बदल चुका है, कलयुग में ' बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया ' इसी मंत्र पर सामाज चल रहा है,आज-कल 'रद्दी सामान' भी बेचे और खरीदे जाते है, निःशुल्क तो कुछ भी नहीं मिलने वाला, यहां तक की कोई अपना बुखार भी किसी को ना दे,अगर उसे यह पता चल जाये कि उसके बुखार से किसी को भला हो रहा है, एक हल्की सी मुस्कान की भी किमत होती है, कुल लोग हंसते तब है, जब हंसने से लाभ होता हो तो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सोचकर हंसी आती है कि आज के लोगों को स्वस्थ रहने के लिए, लाफ्टर थैरेपी (laughter therapy) की जरूरत पड़ रही है, मां तक को सिद्ध करना पड़ रहा है कि वह बच्चे से कितना प्यार करती है,दोस्ती में स्वार्थ झलकता है, हम सब एक-दूसरे को शक की नजरों से देखते है,किसी के लिए कुछ करे तो वह खुश होने की जगह, यह सोचता है कि इसमें आपका स्वार्थ क्या है,

यह कहानी किसी की आपबीती है जो सिद्ध करती है कि " रूपया " ही सबकुछ है,

मैं ' लखन ' 45 वर्ष का कुवारा बाप ( चाचा ), अपने बेटे (भतिजा ) के शादी में, बारातियों के साथ नाच रहा हूं, मुझे खुद नहीं पता कि मैं खुशी में नाच रहा हूं या नाचना मेरी मजबूरी है,मुझे बचपन की बात आज भी याद है, जब मम्मी-पापा, रमेश भैया और मैं एक साथ कितने प्यार से रहते थे, मैं भैया से 12 सा का छोटा हूं, मम्मी बताती है कि भैया के जन्म के बाद उन्हें दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था, बड़ी मन्नत के बाद मेरा जन्म हुआ, हम दो भाई है, दोनों ही मम्मी-पापा के दुलारे है, पापा ISCO में अच्छे पद पर थे, हमारे घर में किसी बात की कोई कमी नहीं थी,

एक दिन कारखाने से खबर आती है कि पापा को अस्पताल में भर्ती किया गया है, हम सब दौड़ते-भागते अस्पताल पहुंचते है, डॉक्टर बताते है कि B.P High होने के कारण दिमाग की नसें भट रही है, वो कोशिश कर रहे है, आगे भगवान की मर्जी, हम सब को उनसे मिलने दिया गया, पापा की आंखों से आंसू की धारा बह रही थी, वो कुछ बोल नहीं पा रहे थे,

उन्होंने अपने दोनों हाथों को उठाते हुए हमारे हाथों को सामने करने का इशारा किया, वो मम्मी, भैया और मेरे हाथ को एक साथ मिलाते हुए इशारे से कुछ समझा रहे थे, भैया को समझ में आ गया, वो पापा से वादा करते है कि हम सब हमेशा साथ रहेंगे,पापा क्या बोलना चाह रहे है, ये बात मम्मी और भैया समझ पा रहे थे, मैं उन दोनों को रोते देख,मैं भी रोये जा रहा था,देखते-ही-देखते पापा हमारे सामने, हमें छोड़कर चले गए, पापा का हाथ हम सब से जुदा हो जाता है,

मम्मी-पापा के रिश्तेदार मिलने आते है, हमारे पास पैसा तो था, पर कोई बड़ा नहीं था जो आगे के कामों की जिम्मेदारी को समझे और निभाये,भैया को ही आगे किया गया, जो कि 20 वर्ष के B.A 1st year के छात्र थे, मामा जी भैया के साथ मिलकर सारे काम-काज को संभालते है, विधी-विधान के बाद सभी अपने-अपने घर चले जाते है,घर पर मम्मी, भैया और मैं रह गये, हंसी की ठहाकों से गुजरने वाला घर में खामोशी विराजमान है, पापा की मौत नौकरी करते हुए हुई थी, इसलिए सरकार की तरफ से उनके एक बेटे को नौकरी मिलता, उस वक्त भैया ही नौकरी के काबिल थे, क्योंकि मैं 8 वर्ष का बालक था, आस-पास के लोगों ने मम्मी से कहा कि आप नौकरी कर लो, ताकी आपके रूपये में दोनों बेटो का हक होगा,एक बेटा को पापा की नौकरी दे देती हो तो दूसरे को क्या देगी,

मम्मी, भैया और मैं तीनों आपस में बात करते है, मेरी तो छोड़ ही दिजिए, मैं तो खामोश रहता था, मेरे लिए सोचा जा रहा था और मुझे ही समझ में नहीं आ रहा था,8 वर्ष की नाबालिक उम्र में "हक" जैसे बड़े शब्द पर बोलने के लिए, मेरे पास शब्द नहीं थे,

मम्मी........ लोगों का कहना है कि मुझे नौकरी लेनी चाहिए,

भैया.......... आप पढ़ी-लिखी नहीं है तो आप को कौन सी नौकरी मिलेगी, फाइल इधर-से-उधर देना,

               ऑफिसर लोग को चाय-पानी देना,

मम्मी......... वो तो है,

भैया.......... मैं तो नौकरी कर सकता हूं, तो मुझे ही करने दो,

मम्मी......... फिर लखन का क्या होगा,

भैया.......... लखन अभी बच्चा है, उसे पढ़ने दिजिए, वो बड़ा होकर नौकरी ले सकता है,

मम्मी......... पापा में लखन का भी हक है,

भैया.......... मम्मी लखन अभी छोटा है, नहीं तो ये नौकरी मैं नहीं लेता, आप ही बोलो क्या करना है,

मम्मी........ लखन के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए, नौकरी तुम्हीं करो पर वादा करो, कि इसका ख्याल

                हमेशा रखोगे, बड़े भाई का फ़र्ज बाप के समान होता है,

भैया.......... मैं वादा करता हूं कि मैं आपका और लखन का ख्याल हमेशा रखूंगा,

मम्मी.......... तो ठीक है, तुम नौकरी करो,

"नियमानुसार रमेश भैया को नौकरी मिल जाती है, पापा की कमी तो हमेशा खलती रही पर घर की आर्थिक स्थिती में सुधार आया"

8 साल बाद,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

भैया 28 साल के हो गये, मैं 12वी की परीक्षा पास कर 18 साल का बालिक हो जाता हूं, रिश्तेदार भैया के शादी के लिए, मम्मी को परेशान करते है, मम्मी भी राजी हो जाती है, भैया की शादी हो जाती है, सब बहुत खुश थे,एक साल बाद भाभी 'मां' बनने वाली होती है, वह खुद आराम करती है और मेरी मम्मी ही सारा काम करती है, मैं घर कामो में मम्मी का साथ देता था,

कुछ दिनों बाद प्यारा सा भतिजा हुआ, भाभी दिनभर अपने बच्चे मे ही लगी रहती है, वो लगभग एक साल का हो गया पर भाभी घर के काम नहीं करती है,मुझे यह सब देश अच्छा नहीं लगता, मैं लाचार था, अभी भी बेरोजगार की गिनती में था, भैया ही घर के मालिक थे, भाभी, हमारे और मम्मी के साथ ऐसा व्यवहार करती मानो हम दोनों उन पर बोझ है, धीरे-धीरे घर में अशांती शुरू हो जाती है, कुछ बाते भैया को नहीं पता होता था, घर में शांती बनाये रखने के लिए, मम्मी खामोश रहती और मुझे भी खामोश रखती,भाभी हमारी खामोशी का फायदा उठाती, हमारे खिलाफ भैया की कान भरती, मां और मैं , भैया के साथ एक ही घर में रहते हुए, दिल से दूर होते गये,

सालो बीतते के बाद, जब भाभी को, दो बेटा और एक बेटी हो गया, वो स्कूल जाने लगे है, अब उनका मम्मी से स्वार्थ समाप्त हो गया है, अब हम दोनों (मां-बेटा ) उनके आंखों में चुभने लगे है,वह बेचैन हो गई है अलग होने के लिए, हमारी खामोशी पर भी वो, जोर-जोर से चिल्लाती है, लोग कहते है कि एक हाथ से ताली नहीं बजता,मगर ये सही नहीं है, कभी-कभी एक हाथ से भी ताली बजती है, जो भाभी को अच्छी तरह से आता है,

एक दिन तो हद ही हो गया, भाभी इतना चिल्ला- चिल्ला कर झगड़ा कर रही थी कि आस-पास के लोग भी आ गये, भैया मां को अपशब्द बोल रहे थे, मां रोये जा रही थी, मैं मां को संभालने में लगा था, भाभी घर छोड़कर जाने की धमकी दे रही थी, पड़ोसियों ने हम सबको शांत कराया और दूसरे दिन ही पंचायत रखी गई,ताकी रोज-रोज के झमेला से मुक्ति मिले,

"पंचायत वालों के सामने सारे तत्थ रखे गये, वो हम सबको खुलकर अपनी बात, सबके सामने रखने को कहा, शर्म से सिर झुक रहा था, जब एक-एक करके घर की बाते सब के सामने आ रहा था"

भाभी.......... मेरी शादी को 12 साल हो गये, मैं तब से नौकरानी की तरह इन दोनों मां-बेटा की सेवा कर

                 रही हूं,

मैं........... भाभी, घर के सारे काम मैं और मां मिलकर करते है, आप सिर्फ अपने तीनों बच्चों में लगी

              रहती है,

भाभी.......... अब मेरे बच्चे भी तुम लोगों की आंखों में चुभने लगे,

मम्मी.......... बहू ऐसी बात नहीं, वो मेरे पोता-पोती है, हमारी जान है,

भाभी.......... ऐसा होता तो काम किये, इस बात का ताना नहीं देते, अब मैं आपलोगों के साथ नहीं रहना

                 चाहती,

मम्मी.......... हम दोनों कहां जाये, नौकरी तो बड़े बेटे रमेश को दिया, ताकि वो अपने छोटे भाई लखन की

                देखभाल करेगा,

भैया..........वही तो निभा रहा हूं, अब-तक उसे बैठाकर खिला रहा हूं, 30 साल का हो गया, मगर नौकरी

               नहीं ले पाया, मुफ्त के होटल में खाने मिल रहा है तो काम करने की जरूरत क्या है,

मम्मी......... ऐसा ना बोल, वो नौकरी की चेष्टा में लगा हुआ है, आज नहीं तो कल नौकरी मिल जायेगी,

भैया.......... अच्छी बात है,

भाभी......... मैं इंतजार नहीं कर सकती हूं, आज फैसला होना चाहिए,

पंचायत......... माता जी आप क्या चाहती है ?

मम्मी.......... हमारे चाहने से क्या होता है, मैं तो चाहती हूं कि मेरे दोनों बेटे आपस में मिलकर रहे,

                  पर हालात हद से ज्यादा बिगड़ चुका है, आप लोग जो फैसला करो, हमें मजूंर है,

पंचायत........ रमेश जी, आपको मम्मी के गुजर-बसर के लिए हर महिना कुछ देना,

भैया............ मैं तैयार हूं, हर महिना 2,000 रु दूंगा,

मम्मी.......... लखन का गुजारा कैसे होगा,

भैया.......... मैं उसे सारी जिंदगी बैठाकर खिलाने की कसम नहीं खाई है,

पंचायत........ कोई दुकान ही खोल लो,

मम्मी....... दुकान खोलने में लाख रुपये लगेंगे, वो कहां से आयेगा, इसे देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं,

पंचायत....... रमेश जी आप क्या बोल रहे हो ?

भैया.......... ठीक है, घर में शांती बनी रहे, इसके लिए मैं लाख रूपये देने को तैयार हूं,

पंचायत...... अच्छी बात है,

भाभी......... जब आप सब बैठे है तो घर का बटंवारा भी हो जाय, मैं कोई झमेला नहीं रखना चाहती,

पंचायत का फैसला, घर दोनों भाई को आधा-आधा बांट दिया गया, छं कांटा जगह अब दो टुकड़ो में बंट गया, दुकान करने के लिए, भैया लाख रूपया देते है दुकान करने के लिए, मम्मी को हर महिना 2,000 रुपया देते है,र्दुभाग्य वश हम दोनों भाइयों के बीच, दिखाई न देने वाली दिवार खड़ी हो जाती है, सबको लगता है कि हम दोनों भाई साथ रहते है, जबकि सच कुछ और है,

भैया-भाभी अपने तीनों बच्चों के साथ 20,000/ माह की आमदनी में मस्त जिंदगी जीते है, मैं बच्चों को पढ़ाकर 2,000 रु कमाता हूं, और 2,000 रु भैया मम्मी के लिए देते है, किसी तरह 4,000 रू में हम दोनों का गुजारा हो जाता है,

“ समय की एक बात सबसे अच्छी है,ये किसी के लिए ठहरता नहीं,अपनी रफ्तार में चलता रहता है,सुख के दिन हो या दुख के, ये स्थाई नहीं होते है, बुरे-से-बुरे हालात में भी अच्छे दिन की आश बनी रहती है”

देखते-देखते, भतीजा- भतीजी बड़े हो गये, भैया पहले बेटी की शादी करते है, अच्छे लड़के की तलाश कर 21 साल की उम्र में करते है, उसके तीन साल बाद 26 साल के भतीजा के लिए, लड़की वाले घर आना शुरू कर दिये है, वो 5 साल से बैंक में काम करता है, भैया और भतीजा की आमदनी से उन्होंने लगभग 25,00,000 रु का घर बनाया है, घर भी देखने योग्य है, लड़की वाले को और क्या चाहिए,

" मम्मी खुश है कि उनके पोते की शादी होने वाली है, साथ में दुःखी भी है कि अभी तक उनके छोटे बेटे ( मेरी ) शादी नहीं हुई, वो मुझसे बार-बार कहती है कि मैं 'गरीब घर की' लड़की से ही शादी कर लूं, ताकि वह हमारे साथ खुश रह सके "

मैं माँ से क्या कहूं और कैसे कहूं कि मात्र 4,000 रु में हमारा तुम्हारा गुजार मुश्किल से होता है, इसी में एक और को कैसे जोड़ दू,उसके अपने सपने होंगे, मुझे कोई हक नहीं बनता, कि मैं किसी के सपनों को गरीबी के दलदल में मार डालू, मैं इस शहर से बाहर भी काम की तलाश में नहीं जा सकता, बेटा होने का फर्ज पूरा कर रहा हूं, मेरी ऐसी किस्मत कि मैं अपने लिए कुछ नहीं कर पाया,पैसे की कमी से, मैंने हमेशा समझौता किया है, आज मेरे पास भी जरूरत भर भी पैसा होता तो मेरा अपना छोटा सा परिवार होता, मुझे भी कोई ' पापा ' कहने वाला होता,

यही है मेरे ' असफल जिंदगी ' की सफल कहानी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

                                                                                                             Rita Gupta.