आजीवन " कुँवारा "

आजीवन " कुँवारा "
मैं 'रोहित' 22 साल का B.A का छात्र हूं, लड़कियाँ मुझ पर फिदा रहती है, मैं अपनी प्रशंसा नहीं कर रहा पर लोग कहते है कि मैं स्मार्ट लगता हूं, सूरत में मैं पापा जैसा हूं पर सिरत मेरी अपनी है, मैं कभी भी अपने पापा जैसा गैरजिम्मेवार नहीं होना चाहुंगा,
मुझे अपनी जिम्मेदारी का अहसास है, उसे पूरा किये बिना मैं अपने बारे में नहीं सोच सकता, मेरे कांलेज की लड़कियाँ मुझे घमंडी समझती पर सच क्या है, उन्हें नहीं पता और मैं उन्हें बता भी नहीं सकता,
एक है, जिससे मैं अपनी सारी बातें बताता आया हूं वो है " मेरी डायरी "यह मेरी हमराज है, इससे कुछ भी नही छिपा है, मुझे अच्छी तरह याद है जब यह पहली बार मेरे हाथ में आई थी, मैं कक्षा 5वी का छात्र था, मेरे जन्मदिन पर पड़ोस की दीदी ने मुझे उपहार स्वरूप 'डायरी और कलम' दिया, सारे उपहारों में से यह मेरे दिल के करीब रहा और आज भी है, इस पर पहली बार मैं तब लिखा, जब मैं बहुत दुःखी और उदास हुआ था,
मैं 'मोहित' बड़े परिवार का सबसे छोटा सदस्य हूं, दादा-दादी, मम्मी-पापा, तीन बहने और मैं, एक दिन दादी ने मुझे दुकान से बिस्कुट लाने को कहा, मैं खेलने में व्यस्थ रह गया और उनका काम नहीं हुआ, शाम को पापा ऑफिस से आते है, दादी उनको देखते ही रोना शुरू,
पापा........ क्या हुआ मां, आप क्यों रो रही है ?
दादी......... अपने ही घर में मेरी कोई इंजत नहीं, एक काम करने बोली तेरे बेटे को, वो भी नहीं किया,
पापा........( चिल्लाते हुए मुझे बुलाते है, कारण जाने बिना, मेरे दोनों गालों पर थप्पड़ जड़ दिये,)
“मैं रोते-रोते सो गया, मुझे बहुत दुःख लगा, एक बार पूछा भी नहीं कि क्या हुआ था, सबके सोने के बाद रात को 12 बजे मेरी नींद खुली, मैं अपने बक्से से डायरी निकाला और पहली बार उस पर लिखता हूं "मैं बहुत दुःखी हूं, मुझसे कोई प्यार नहीं करता, पापा और दादी बहुत बुरे है दादी से मैं कभी बात नहीं करूगा, उन्होंने मुझे पापा से मार खिलाया"
मेरे दादाजी की नौकरी ISCO में है, पापा उनके एकलौते बारिश है, कुछ दादा-दादी के प्यार ने, कुछ खुद, अपने हालात के जिम्मेदार है, पढ़ाई नहीं की, हाथ का कोई काम नहीं सिखा, एक साधारण सा पान की दुकान खोलकर बैठें है, हमारा बड़ा सा परिवार दादाजी के आमदनी पर निर्भर है,घर के बाहर दादाजी की धाक है, घर के अन्तर दादीजी की धाक चलती है, मम्मी इतनी भोली और संस्कारी है कि दादी और पापा के हर अत्याचार को चुपचाप सहती है, आठ सदस्यों का खाना पकाना और घर के सारे काम मम्मी ही करती है, तीनों दीदी अपनी-अपनी पढ़ाई और घुमने में व्यस्थ रहती है,
मैं 8 साल का बालक क्या करता, सबके दिनचर्या को देखते रहता, दिन-भर के काम से थकने के कारण, मां को रात में बुखार हो जाता, फिर भी पापा या दादी को कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं मां के पास ही सोता था,पापा रोज शराब पीकर आते और मम्मी को गाली देते, मैं उठकर रोने लगता, वो मुझे भी डाटते, मैं डर से सो जाता,एक बार मां को तेज बुखार हुआ, तब जाकर उन्हें दादी डॉक्टर के पास ले गई, वहां कुछ टेस्ट किए जाते है, रिपोर्ट से पता चलता है कि मम्मी के किडनी में सूजन है, दवा और आराम की जरूरत है, आराम के बिना दवा काम नहीं करेगी,
हर इंसान की कार्य क्षमता होती है, उन्होंने शुरू से हमेशा क्षमता से अधिक परिश्रम किया है, अब आराम की जरूरत है, दादी डाक्टर की बात सुनती तो है पर उस पर अमल नहीं करती, मेरी बहनों को भी ये समझ में नहीं आता कि मिल-जुल के काम करा दे,उस वक्त मुझसे जो हो पाता था, वो मैं करता, छुट्टी के दिन सुबह से लेकर रात तक सारा काम करते देख, मेरा मन खेलने में भी नहीं लगता, मम्मी जबरजस्ती मुझे दोस्तों के साथ खेलने भेज देती, उनकी तबियत लगभग साल-भर इसी तरह चली,उसके बाद दवा भी काम करना बंद कर दिया, मां पापा से जिंद करके बड़ी दीदी की शादी करवाती है, उस वक्त दीदी 18 साल की थी, मां की अंतिम इच्छा समझकर, दीदी की शादी कर दी गई, उनके शादी के छः महीना बाद ही मम्मी का 'स्वर्गवास' हो गया,
उसके बाद दादी और पापा की मनमानी शुरू हो जाती है, दोनों बड़ी बहने 14 और 12 साल की और मैं 8 साल का था, बड़ी दीदी तो ससुराल चली गई थी, हम तीनों भाई-बहन को बहुत कुछ सहना पड़ा, दादी और पापा की सारी बातों को लिखा जाय तो रामायण से मोटी किताब बन जाय, कुछ बाते है जो आज भी याद है और जख्मों को ताजा कर देती है,2 No वाली दीदी जो नौवी की छात्रा है, खाना पकाने के लिए उनकी पढ़ाई बंद कर दी गई, वो आगे नहीं पढ़ पाई,
दिन बितते है, हम सब बड़े होते है, दीदी की उम्र 20 साल की हो गई, शादी के लड़के देखे जाते है पर नौवी पास लड़की से कोई पढ़ा-लिखा लड़का शादी नहीं करना चाहता, बहुत से रिश्ते लौट गये,मम्मी के नहीं होने से, पापा सबके सामने रोते रहते है, विशेषकर महिलाओं के सामने ताकी उन्हे दया आ जाए, और वो अपना कंधा इन्हें सिर रखकर रोने को दे, सारी महिलाए ऐसी नही है पर कुछ है जो ऐसे लोगों के बातों में उलझ जाती है,
वही हुआ जिस बात का डर था, पापा को अपनी पड़ोस में रह रही एक नौकरानी से प्यार हो गया, वो उससे शादी करना चाहते थे, उन्हें जरा भी शर्म नहीं 22 साल और 20 साल की दोनों बेटी शादी के योग्य है, उनकी शादी की चिंता नहीं है, आज भी सिर्फ अपने बारे में सोचते है, उस वक्त मेरी उम्र 16 साल की थी,अच्छी खबर को फैलने में समय लगता है, पर बुरी खबर को मानों पंख लगे होते है, आग की तरह, पापा का इश्क फरमान, लगभग सबको पता चल गया,मेरे दोस्त मेरा मजाक बनाते,
दादी, पापा का साथ देती थी, दादाजी को यह सब पसंद नहीं, पर लाचार थे, वो पापा पर गुस्साते हुए बोलते है, पहले दूसरी नम्बर वाली बेटी की शादी कर भी जो दिल करे करना, पापा अपनी शादी के लिए, दीदी के शादी एक ऐसे लड़के से कर देते है जो पियक्कड़ के साथ-साथ बेरोजगार भी है, दीदी मुश्किल से ससुराल में रह पाती,यहां आती तो दादी ताना दे देकर दीदी का जीना दुस्वार कर दिया था, ससुराल जाती तो नाकारा पति के कारण वहां के लोग उसकी कद्र नहीं करते, ऐसे में दिन बितता गया, दीदी मां बनने वाली रह गई, फिर भी जीजाजी को जिम्मेदारी का अहसास नहीं,
जीजाजी के लापरवारी और गैर जिम्मेदारी की सजा दीदी को मिल रही थी, वह तनाव में रहती, सोनोग्राफी से पता चला कि 'जुड़वा बच्चा' होने वाला है, कुपोषण और तनाव के कारण बच्चे की विकास पर असर पड़ रहा है, 4 महिने तो बित चुके है बाकी के 5 महीने में दीदी को अच्छी खुराक और दवा लेनी होगी, वर्ना बच्चों को बचाना मुश्किल हो जाएगा, डाक्टर का कहना था कि ऑपरेशन करके बच्चों का जन्म होगा, दूसरा उपाय नहीं है,
दीदी डॉक्टर की बातोँ को सुनकर बहुत डर गई, पति बेरोजगार पापा को प्यार करने से समय मिले तो किसी के बारे मेँ सोचे I मायके मेँ रहने से दादी का ताना ससुराल मेँ सास का ताना कि हमारे जमाने मेँ तो बच्चा घर मेँ ही हो जाया करता था, आज की लड़कियोँ का नौटंकी है थोड़ा दर्द सहन नहीँ कर सकती भगवान बच्चा दिए हैँ तो वह धरती पर अपने आ जाएगा, जब डॉक्टर नहीँ हुआ करते थे, लोगोँ के बच्चे कैसे होते थे, डॉक्टर अपना जेब गर्म करने के लिए लोगोँ को डरा देते है,
दीदी अपनी सास की बातोँ मेँ आ जाती है, वह ससुराल चली जाती है और घर मेँ ही रहकर बच्चे को जन्म देने का फैसला करती है, उसकी अनपढ़ सास खुद को डॉक्टर से कम नहीँ समझती अपने ऊपर सारा भार ले लेती है, गलत निर्णय का परिणाम इतना बुरा हुआ, जिसे कोई नहीँ भूल पाएगा घर पर एक बच्चे का जन्म होता है और एक बच्चा पेट मेँ ही रह जाता है दीदी बेहोश हो जाती है जो बच्चा हुआ था, उसे घर पर ही छोड़कर दीदी को अस्पताल ले जाते हैँ ऐसे में लगभग तीन घंटा लग जाता है, अस्पताल मेँ चेक अप के बाद डॉक्टर कहता है कि बच्चा पेट मेँ मर चुका है बड़ा ऑपरेशन से उस मरे हुए बच्चे को जल्दी निकालना होगा वरना दीदी के शरीर मेँ जहर फैल जाएगा,
दादा जी तुरंत 20 हजार रुपया अस्पताल मेँ जमा करते हैँ, तब दीदी बच पाती है उसे अस्पताल मेँ ही रखते हैँ दीदी अपने बच्चे को मांगती है तो जीजा जी घर आते हैँ ताकि उस बच्चे को दीदी के गोद मेँ दे सके ,घर आने पर पता चलता है कि वह बच्चा भी दो घंटा जिंदा रहता है फिर दम तोड़ चुका है ,दुर्भाग्यवश दीदी के पास एक भी बच्चा नहीँ रहा ,कुछ दिनोँ के लिए वह पत्थर सी हो गई, किसी से कोई बात नहीँ करना चुपचाप अपने कमरे मेँ बंद रहना उनका मन बदलने के लिए उन्हें मायके लाते है, यहाँ भी खामोश रहती हैँ,
एक दिन अचानक दादी की तबियत खराब होती है और वह भी हम सबको छोड़ जाती हैँ , परिवार के नाम पर घर में, मैं और दोनोँ दीदी रह गए,दादा जी गांव पर ही रहते हैँ वहीँ से हमारे लिए पैसा भेजते हैँ, पापा का ठेरा तो उनकी प्रेमिका के घर पर ही रहता है ,हमारा भरा पूरा परिवार वाला घर अब डरावना लगता है ,दादा के यहाँ नहीँ रहने से पापा हमारी आधी जमीन अपनी प्रेमिका के नाम कर चुके थे, यह बात हम सबको बहुत देर के बाद पता चला,
उनकी इतनी हिम्मत हो गई कि वह उसे घर मेँ लाकर रखने लगे, हम सबको शर्म आती है, उन्हें कोई शर्म नहीँ, दोनोँ दीदी और मैँ क्या कर सकते हैँ, मैँ बड़ी मुश्किल सेअपनी शिक्षा पूरी की, आज मैँ 22 साल का हूँ आपनी पढ़ाई समाप्त कर नौकरी करुंगा,जो भी नौकरी मिल जाए साथ मेँ अच्छी नौकरी के लिए तैयारी करता रहूँगा,
छोटी दीदी भी उसी हालात में 12 पास करती है, मैं तो बाहर के लोगों और दोस्तों से मिलकर अपना मन हल्का कर लिया करता हूं,दीदी तो वो भी नहीं कर सकती है, वह बहुत ही सहनशील है,उनकी भी उम्र शादी के योग्य हो गई है, दादा जी मेरे नाम से खेत खरीदकर रखे है, मैं उसे बेचकर दीदी की शादी कराऊंगा,
मैं खुद से वादा करता हूं कि "आजीवन कुँवारा " रहूंगा, तीनों बहनों को बाप का प्यार नहीं मिला, मैं उस कमी को पूरा करने की कोशिश करता रहूंगा, लड़कियों को हमेशा मायके के प्यार और दुलार की जरूरत पड़ती है,
Rita Gupta.