लेना था, तो दिया "क्यों"

लेना था, तो दिया "क्यों"
ये कहानी एक ऐसे भक्त की है, जो भगवान से ऐसा नाराज हुआ कि उसने उनसे सारे रिश्ते-नाते तोड़ दिये,
भगवान और भक्त के बीच का रिश्ता कुछ ऐसा ही अनोखा है, एक मनोंकामना पूरी हुई तो दूसरी का जन्म हो गया, जब- तक जीवन है, मनोंकामनाए नहीं मर सकती, कभी ये चाहिए तो कभी वो, सही माने तो ,सही मायने में हमें पता ही नहीं कि हमें चाहिए क्या.................? दोनों ही एक-दूसरे के पूरक है,
1……..भक्त जितना भोला-भाला, भगवान उतने ही समझदार
2…….भक्त मांगने वाला, तो भगवान देने वाले,
3…….भक्त अपनी गलती मानने को तैयार नहीं सारा दोष भगवान पर, भगवान खामोश रहकर
सुननेवाले,
भगवान का कहना,,,,,,,,,,,,,, मैंने दिया था, जरूरत पड़ने पर ले लिया,
भक्त का कहना,,,,,,,,,,,,,,,,,,लेना था, तो दिया "क्यों"
अनिता बहुत ही धार्मिक स्वभाव की लड़की है, वो भगवान से ऐसे मांगती है जैसे बच्चे मम्मी-पापा से जिद करते है, बचपन से जो कुछ चाहा, सब पाया, शायद भगवान को भी इसके जिद को पूरा करना अच्छा लगता होगा, शायद इसे ही भाग्य कहते है,बड़ी हुई तो उसके शादी के लिए, एक अच्छे घर से रिश्ता खुद चलकर आता है, घरवाले बहुत खुश है, शादी के लिए, लड़का ढुढ़ने की जरूरत नहीं पड़ी, शादी बहुत धूम-धाम से होती है, ससुराल वाले भी अनिता जैसी बहू पाकर खुश है, ओम जी ( अनिता के पति ) भी दामाद के रूप में बेटे जैसा फर्ज निभाते है, अनिता के मम्मी-पापा भी ओम जी को पाकर बेहद खुश है, दोनों की जोड़ी ऐसी, मानो एक-दूसरे के लिए बने हो, जिंदगी की गाड़ी अच्छी तरह चल रही है,
4-5 साल बीत गये पर अनिता को मां कहने वाले का आगमन नहीं हुआ, मायके और ससुरालवालों को चिंता होने लगी, डाक्टर को दिखाना शुरू हो जाता है, जितने सब चिंतित थे, उतना अनिता नहीं, क्योंकि उसे पूरा विश्वास है कि भगवान उसकी मनोकामना जरूर पूरा करेगे, वह हर साल " बाबा धाम" जल चढ़ाने जाती है, और बाबा से मां बनने का आर्शीवाद लेकर आती है, भगवान इतने कठोर नहीं हो सकते,
भगवान और भक्त अपने-अपने जिद पर है, अंत में 15 साल बाद अनिता को मां बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है, भोले शंकर के आर्शीवाद से हुए बच्चे का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया, नामकरण विधि के माध्यम से 'महेश' नाम दिया जाता है, अनिता उसे हद से ज्यादा लाड़-प्यार से पालती है, वह मम्मी-पापा का एकलौता संतान होने के साथ-साथ, दादा-दादी का एकलौता पोता भी है,महेश को अच्छी शिक्षा दी जाती है, कभी भी उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं होती, महेश बड़ा होकर सबका प्यारा और बहुत ही संस्कारी नागरिक बनता है, स्कूल की शिक्षा पूरी कर, कांलेज का छात्र है,
अनिता के भैयाजी को पांच बेटियां है, वह एक-एक करके सबकी शादी कर रहे है, उनकी चौथे नम्बर वाली बेटी का रंग थोड़ा सांवला है, जिसका नाम लिली है ,जो पढ़ने में अच्छी है, सिर्फ रंग के कारण बहुत से लड़के वाले देखकर चले गये, सब परेशान है, अनिता भी अपनी भतिजी लिली के लिए रिश्ता देख रही है, उन्हीं के शहर का जान-पहचान वालों में से एक लड़के वाले, लिली को देखने आते है, उन्हें लड़की पढ़ी-लिखी चाहिए जो कि वो है, अच्छे संस्कारी घर की लड़की देखकर लड़के वाले, लिली के रंग को नजरअंदाज किया, और रिश्ता तय कर लिया,दोनों रिश्तेदार पैसे को ध्यान में रखते हुए, मंदिर में शादी करने का फैसला लेते है, बाबाधाम (देवघर) का मंदिर लड़के वाले के लिए नजदिक है इसीलए उन्होंने उस मंदिर का चुनाव किया, लड़की वाले बंगाल के निवासी है, वो भी वहां जाने को तैयार हो गये, उन्होंने आपस में ठीक किया, लड़के वालों के तरफ से 10-15 लोग देवघर मंदिर में बारात लेकर आयेगे, और लड़किवालों के तरफ से 10-15 लोग होगे जो विवाह के कार्यक्रम में भाग लेगे, वही पुर्णिमा के दिन सामुहिक विवाह में ही, सब काम हो जायेगा, कम समय और कम खर्च में सब हो जायेगा,अनिता के भैयाजी, लिली के कन्यादान के लिए, अपने बहन-बहनोई (अनिता और उनके पति) को ही कहते है, वो लोग भी मान जाते है,
अनिता पर ढेर सारी जिम्मेदारी आ जाती है, वह लिली की फुआ है, अगुआ का काम भी वही कर रही है, साथ में कन्यादान करके मां का फर्ज को भी पूरा करना है, इतनी जिम्मेदारी में भी बहुत खुश है कि भगवान ने उसे इस काबिल तो समझा, बेटी नहीं होने के बाद भी बेटी की मां का फर्ज पूरा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,वह लिली के लिए, साड़ी और गहनों की खरीदारी करती है, पुर्णिमा का दिन,शादी के लिए शुभ दिन माना गया था, दोनों परिवारों को बाबाधाम ही आना था, पहले से 2-2 कमरे, लिए जा चुके थे, अनिता को लड़के वालों के तरफ से आती, क्योंकि वह उसी शहर की रहने वाली थी, लिली अपनी फुआ को एक दिन पहले ही अपने यहां बुला लेती है, उसका कहना है कि फुआ लड़कीवालों के तरफ से है, अनिता अपनी भतिजी की बात मानती है, वह मायके आ जाती है,
शादी के दिन, सुबह-सुबह लड़की वाले बाबाधाम पहुंचते है, वही के तालाब में स्नान कर पूजा कर लेते है, उसके बाद शादी के लिए साज-सिंगार शुरू होने लगता है तब तक 12.30 पर लड़के वाले बारात लेकर आ जाते है, अनिता के पति (ओम जी ) और बेटा (महेश) बाराती के साथ आये है, वह इतनी व्यस्थ कि सिर्फ उन्हें देखती है और फिर शादी की तैयारी में लग जाती है, बरातियों को दो कमरों में ठहरने का इंतजाम किया गया है, जो कि ऊपर तला पर था,लड़की वालों का दोनों कमरा नीचे था, सभी शादी के धूम-धाम में लगे है, महेश, पापा से बोलकर अपने एक दोस्त के साथ, वही के तालाब में स्नान करने जाने लगा, पापा गुस्साते है पर वह जल्दी आ जाऊंगा बोलकर भाग जाता है,
सभी शादी के तैयारी में लगे है और महेश अपने एक दोस्त के साथ तालाब पर नहाने चला जाता है, दोनों खुब नहाते है, उसके बाद महेश अपने दोस्त से अपनी तस्वीर लेने को कहता है, दोस्त तालाब से बाहार आकर मोबाइल से महेश की तस्वीर लेता है, महेश एक-से-एक स्टाइल और पोज लेकर फोटो खिंचाता है,उसके लिए वह तालाब की सीमा रेखा को भी पार कर जाता है,न जाने ऐसा क्या होता है, कि वह डूबने लगता है, वह बचाओ-बचाओ चिल्लाता है, उसका दोस्त और बाकी लोग चिल्लाते है, वहां उपस्थित सुरक्षा कर्मचारी भी बचाने जाते है,कोई डुब गया है पूरे मंदिर में यह खबर आग की तरह फैल गई,
अनिता इन सब बातों से अनजान शादी की तैयारी में लगी है, उसे पता नहीं होता है कि महेश अपने दोस्त के साथ तालाब पर गया है,ओम जी दौड़ते- भागते तालाब की ओर जाते है, यह देखने कि महेश अपने दोस्त के साथ कहां है, और किस बेचारे का बच्चा डूब गया, जब वो उसके दोस्त को रोते हुए देखते है तो डर जाते है, पूछने पर पता चलता है कि डूबने वाला बच्चा कोई और नहीं महेश ही है, ओमजी आवाक रह जाते है, आंखे पत्थर की हो जाती है, वो भी बेटे की तलाश में तालाब में कूद पड़ते है, सभी की कोशिश बेकार साबित होती है, अंत में जाल फेककर महेश को बाहर निकाला जाता है, जल्दी-जल्दी अस्पताल ले जाते है,
तब-तक अनिता और शादी में आये सभी लोगों को पता चल जाता है कि यह र्दुघटना ' महेश 'के साथ हुआ है, अनिता के भैया उसे अपने साथ अस्पताल लेकर जाते है, बाकी सब मंदिर में ही महेश की सलामती की दुआ मांगते है,उधर अस्पताल में महेश के साथ उसके मम्मी-पापा, मामा जी और दोस्त है, डाक्टर उसे O.T में रखे हुए है, डाक्टर बाहर आकर सिर्फ एक आदमी को अंदर बुलाता है, उसके पापा जाते है,
डॉक्टर.......... आप
ओम.......... मैं पापा हूं,
डॉक्टर..........Sorry, आपका बच्चा यहां लाने के पहले ही दम तोड़ चुका है, पानी में लगभग घंटाभर यह
बहुत तड़पा है अंत में Heart fail हो गया है, आप अस्पताल के कारवाई के बाद, अपने साथ
ले जाये,
ओम.......... डॉक्टर बाबु, आपसे एक प्रार्थना है, आप मान ले,
डॉक्टर.......... बोलिए,
ओम.......... हम सब यहां बेटी की शादी में आये है, मंदिर में शादी की पूरी तैयारी हो चुकी है, मुझे
कन्यादान करना है, आप मेरे बेटे को सिर्फ 2 घंटा अपने पास रहने दे, मैं बेटी विदाई कर,
अपने बेटे को ले जाऊंगा,
डॉक्टर......... शादी,,,,,,,,,,, बाहर कौन-कौन खड़ा है,
ओम............. इसकी मां, मामा और दोस्त है, आप उनसे बोल दिजिए कि अभी सांस चल रही है, बाकी
भगवान की मर्जी, आपने सच बोला तो, बेटी की शादी टूट जायेगी, सब उसे अपसगून
समझेंगे, गलत नजरों से देखेंगे, बड़ी मुश्किल से ये रिश्ता मिला है,
डॉक्टर......... आपकी बेटी है,
ओम...........नहीं, साले साहब (मेरे पत्नी के भाई) की बेटी है, पर बेटी तो बेटी होती है,
डॉक्टर..........(आवाक् ) होकर, ओमजी की महानता देखते ही रह जाता है,
ओम.......... क्या हुआ, डॉक्टर बाबु आप झूठ बोलेगे ना,
डॉक्टर......... जैसा आप बोले,
डॉक्टर बाहर आकर, खड़े हुए रिश्तेदारों को बोलते है कि महेश की सांस चल रही है, भगवान से प्रार्थना करे
ओमजी वहां से सभी को लेकर मंदिर में आते है, और सबसे कहते है कि डॉक्टर कोशिश कर रहे है, आप सब शादी होने दे, सब उदास है पर शादी नहीं रुकती, शादी के बाद बारातियों को विदा कर दिया जाता है,उसके बाद, ओम जी फूट-फूट कर रोने लगते है, सबको लगता है कि लिली के विदाई के आंसू है, अनिता खुद रोते हुए, उन्हें चुप कराती है,
अनिता के भैया............ चुप हो जाइए, बेटी जी पराया धन है, उसे एक ना एक दिन विदा करना पड़ता है,
अनिता........ अस्पताल चलते है, महेश हमारा इंतजार करता होगा, कब से अकेले है,
ओम.......... हम सब उसका इंतजार करते रहेगे सारी जिंदगी, कि वो आयेगा, वह हमसब को छोड़कर
चला गया,
अनिता........ आप अपशब्द ना बोले, हमारे महेश की सांस चल रही है, भगवान उसे ठीक कर देगे, मुझे
पूरा विश्वास है,
ओम.........नहीं अनिता, भगवान तुम्हारे विश्वास को तोड़ चुके है, महेश दुनियां छोड़कर जा चुका है, मैनें
डाक्टर से झूठ बोलने को कहा ताकि लिली की शादी हो पाये, सच जानने के बाद बारात लौट
जाती है, शादी नहीं हो पाती,
अनिता........ आप इतने पत्थर दिल हो सकते हो, मैं नहीं जानती थी, मुझे अपने बेटे के पास जाना
है,(रोते-रोते बेहोश हो जाती है,)
ओम..........हिम्मत रखो, तुम भी पत्थर दिल बन जाओ, अब रोना तो सारी जिंदगी है,
अनिता........" बाबाधाम" में ही (सिर पटक-पटक कर रोती है ) आपने ऐसा क्यों किया, महेश तो आपका
ही दिया हुआ वरदान है, फिर आपने उसकी रक्षा क्यों नहीं की, आप निष्ठुर है, मेरे विश्वास
को तोड़ा है, आज से मेरा-आपका कोई रिश्ता नहीं,
ओम....... अनिता ऐसे नहीं बोलते, जरा सोचो लोग तुम्हें बांझ के नाम से बुलाते थे, तुम्हारे अंश में नहीं
होने के बाद भी उन्होंने तुम्हें 'महेश' जैसा प्यारा बेटा दिया,15 साल तक तुमने मां होने के
सुख को महसूस किया, भगवान ने जो दिया था, जरूरत पड़ने पर अपना दिया हुआ ही वापस
ले लिया है,
अनिता....... लेना था तो दिया "क्यों"
Rita Gupta.